आरोपी को बचाने बदला बयान तो रेप पीडि़ता के खिलाफ भी चलेगा मुकदमा: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर किसी मामले में पीडि़त, आरोपी को बचाने के लिए उससे समझौता करता है और अपने बयान से पलट जाता है तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर रेप मामले में आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं और रेप पीडि़ता अपने बयान से पलटकर आरोपी को बचाने की कोशिश करती है तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने कहा कि अगर रेप के आरोपी को पीडि़ता द्वारा मेडिकल रिपोर्ट के अलावा अन्य किसी भी आधार पर क्लीन चिट भी दे दी जाती है, तब भी उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में दोषी को 10 साल की सजा सुनाई जबकि रेप पीडि़ता ने अपना बयान बदलते हुए कहा था कि उनके साथ बलात्कार नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, क्रिमिनल ट्रायल का मकसद सच सामने लाना है। पूछताछ कैसी हो यह हर केस और उसके तथ्यों पर निर्भर करते है। किसी को निर्दोष मानने और पीडि़ता के हक के बीच संतुलन जरूरी है। आरोपी या पीडि़त किसी को यह अनुमित नहीं है कि वह झूठ बोलकर क्रिमिनल ट्रायल को पलट दे और कोर्ट को मजाक का विषय बनाए। किसी को भी यह अनुमति नहीं होगी कि वह अपने बयान को पूरी तरह पलटते हुए मुकर जाए और क्रिमिनल ट्रायल या न्याय व्यवस्था का मजाक बनाए।2004 के इस रेप मामले में पीडि़ता मात्र नौ साल की थी और उसकी मां ने एफआईआर दर्ज कराई थी। उसी दिन पीडि़ता का मेडिकल चेकअप कराया गया। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार भी किया, जिसे पीडि़ता ने पहचाना भी। छह महीने बाद कोर्ट के सामने पीडि़ता और मुख्य गवाह (पीडि़ता की बहन) ने रेप की बात को नकार दिया और कहा कि जो चोट लगी थी, वह गिरने की वजह से थी। ऐसे में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया। हालांकि, गुजरात हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और रेप पीडि़ता की मेडिकल रिपोर्ट और अन्य सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी करार दिया। दोषी करार दिए जाने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। सबूतों को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पीडि़ता का परिवार गरीब था और वह उसके कुल पांच भाई-बहन हैं। रेप उस समय हुआ जब वह भैंस चराने गई थी। छह महीने बाद रेप पीडि़ता ने अपना बयान बदल दिया। ऐसे में हमारा भी मानना है कि गुजरात हाई कोर्ट ने जो तर्क दिए हैं कि आरोपी ने कैसे भी करके पीडि़ता को बयान पलटने पर मजबूर किया होगा, सही हैं।
बेंच ने आगे कहा, अगर कोई पीडि़त/पीडि़ता न्यायिक प्रक्रिया को पलट देने के लिए अपना बयान बदल देता है तो कोर्ट चुप नहीं बैठेगा। सच सामने लाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। सबूत होने के बावजूद किसी के दबाव के चलते बयान बदलना स्वीकार्य नहीं होगा। पीडि़ता द्वारा बयान बदलने के चलते उसके खिलाफ केस चलाए जाने के लिए यह मामला एकदम उपयुक्त है लेकिन क्योंकि यह मामला 14 साल पुराना है इसलिए उन्हें छोड़ा जा रहा है।

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